SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 589
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५६६) करनेमें अतिनिपुण पट्टिश और दूसरे हाथमें किसी रातिसे फूट न सके ऐसा दुस्फोट, एक हाथमें बैरीलोगोंको विघ्न करनेवाली शतघ्नी और दूसरे हाथमें परचक्रको कालचक्र समान चक्र; इस प्रकार बीसों हाथोंमें क्रमशः बीस आयुध धारण कर वह बड़ा ही भयंकर हो गया. वैसे ही, एक मुखसे सांडकी भांति डकारता, दूसरे मुखसे तूफानी समुद्र के समान गर्जना करता, तीसरे मुखसे सिंहके समान सिंहनाद करता, चौथे मुखसे अट्टहास्य (खिलखिला कर हंसना) करता,पांचवें मुखसे वासुदेवकी भांति भारी शंख बजाता,छडे मुखसे मंत्रसाधक पुरुषकी भांति दिव्यमंत्रोंका जप करता, सात मुखसे एक बड़े वानरकी भांति हक्कारव करता, आठवें मुखसे पिशाचकी तरह उच्चस्वरसे भयंकर किलकिल शब्द करता, वनमें मुखसे गुरुकी भांति कुशिष्यरुपी सेनाको तर्जना करता तथा दशवें मुखसे वादी जैसे प्रतिवादीको तिरस्कार करता है, वैसे रत्नसारकुमारको तिरस्कार करता हुआ वह भिन्न २ चेष्टा करनेवाले दशमुखोंसे मानो दशों दिशाओंको समकालमें भक्षण करनेको तैयार हुआ हो ऐसा दीखता था. एक दाहिनी और एक बाई दो आंखोंसे अपनी सेनाके तरफ अवज्ञा और तिरस्कारसे देखता, दो आखोंसे अपनी भुजाओंको अहंकार व उत्साहसे देखता, दो आंखोंसे अपने आयुधोंको हर्ष व उत्कर्षसे देखता, दो आंखोंसे तोतेको आक्षेप और दयासे देखता, दो आंखोंसे
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy