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________________ ( ५४६ ) वश वह कन्या कहीं पर भी तुझे मिलेगी । कारण कि भाग्य - शाली पुरुषोंको वांछितवस्तुकी प्राप्ति अवश्य होती है । हे कुमार ! यद्यपि यह बात मैं कल्पना करके कहता हूं, तथापि तू इसे मान्य करना | थोड़े ही समय के अनंतर सत्यासत्यका निर्णय हो जावेगा । इसलिये हे कुमार ! तू सुविचारी होकर ऐसा विलाप क्यों करता है ? धीरपुरुषको यह बात उचित नहीं । " कर्तव्यज्ञानी रत्नसारकुमारने तोते की ऐसी युक्तिसे परिपूर्ण वाणी सुनकर शोक करना छोड़ दिया. ज्ञानियोंका वचन क्या नहीं कर सकता है ? इसके अनन्तर रत्नसारकुमार व तोता दोनों अश्व पर बैठकर इष्टदेवकी भांति तापसकुमारका स्मरण करते हुए पूर्वानुसार मार्ग चलने लगे. एक सरीखा प्रयाण करते हुए उन दोनों जनोंने क्रमशः हजारों विस्तृत वन, पर्वत, खाने, नगर, सरोवर, नदी आदि पार करके साम्हने एक अतिशय मनोहरवृक्षों से सुशोभित उद्यान देखा. वह उद्यान ऐसा दीखता था मानो अद्वितीय सुगंधित पुष्पोंमें भ्रमण करते हुए भ्रमरोंके गुंजारशब्दसे आदर पूर्वक रत्नसारकुमारका स्वागत कर रहे हैं. दोनों जने उक्त उद्यानमें प्रवेश कर अतिहर्षित हुए. उस उद्यानमें भांति भांति के रत्नोंसे सुशोभित एक श्री आदिनाथका मंदिर था. वह अपनी फहराती हुई ध्वजासे दूरहीसे रत्नसारकुमारको बुलाकर यह कह रहा था कि, “हे
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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