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________________ ( ५४४ ) ऐसा उच्चस्वरसे कहकर तथा दृष्टिविष सर्प समान विकराल तलवार म्यानमेंसे निकालकर वेगसे उसके पीछे दौडा. सत्य ही है शूरवीर लोगोंकी यही रीति है. रत्नसारके कुछ दूर चले जाने पर उसके इस अद्भुत चरित्रसे चकित हो तोतेने कहा, " हे रत्तसारकुमार ! तू चतुर होते हुए मुग्धमनुष्यकी भांति पीछे पीछे क्यों दौडता हैं ? कहां तो तापसकुमार ? और कहां यह तूफानी पवन ? यम जैसे जीवको ले जाता है, वैसे यह अत्यन्त भयंकर पवन तापसकुमारको हरण कर, कृतार्थ हो कौन जाने उसे कहां और किस प्रकार ले गया ? हे कुमार ! इतनी देर में वह पवन तापसकुमारको असंख्य लक्ष योजन दूर ले जाकर कहीं गायब हो गया. इसलिये तू शीघ्र वापस आ . ' ܕܕ बड़े वेग से किया हुआ कार्य निष्फल हो ज नेसे लज्जित हुआ कुमार तोतेके वचनसे वापिस लौटा और अत्यन्त खिन हो इस प्रकार विलाप करने लगा. "हे पवन ! तूने मेरे सर्वस्व तापसकुमारको हरण कर दावाग्नि समान क्रूर बर्त्ताव क्यों किया? हाय हाय ! तापसकुमारका मुखचन्द्र देखकर मेरे नेत्ररूप नीलकमल कब विकसित होंगे ? अमृतकी लहरके समान स्निग्ध, मुग्ध और मधुर व चित्ताकर्षक दृष्टिविलास किस प्रकार मुझे मिलेंगे ? मैं दरिद्री उसके कल्पवृक्षके पुष्प समान, अमृतको भी तुच्छ करनेवाले बारम्बार मुखसे निकलते हुए वचन अब किस प्रकार सुनूंगा ?" स्त्रियोंके वियोगसे दुःखी मनुष्योंकी
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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