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________________ ( ५२९ ) बहुत से धन से तथा सर्वभोगापभाग के साधनों से भी सुख उत्पन्न नहीं होता. सुभूमचक्रवर्ती, कोणिक राजा, मम्मण सेठ, हासाप्रहासापति आदि मनुष्य संतोष न रखनेहीसे दुःखी हुए कहा है कि - अभयकुमारके समान संतोषी मनुष्यको जो कुछ सुख मिलता है. वह सुख असंतोषी चक्रवर्ती अथवा इन्द्रको भी नहीं मिल सकता. ऊपर ऊपर देखनेवाले सब दरिद्री हो जाते हैं; परन्तु नीचे नीचे देखनेवाले किस मनुष्य का बडप्पन वृद्धिको प्राप्त न हुआ ? इससे सुखको पुष्टि देनेवाले सन्तोषको साध के लिये तू अपनी इच्छा के अनुसार धनधान्यआदि परिग्रहका परिमाण कर. धर्म, नियम लेकर स्वल्पमात्र पालन किया होवे, तो भी उससे अपार फल प्राप्त होता है, परन्तु नियम लिये बिना बहुतसा धर्म पाला हो तो भी उससे अल्पमात्रही फल मिलता है. देखो ! कुएमें स्वल्पमात्र झरना होता है परन्तु उसके नियमित होनेसे जल कभी भी नहीं खुटता, और सरोवरका जल किनारे तक भरा हो तो भी वह अनियमित होनेसे सूख जाता है. मनुष्यने नियम लिया होवे तो वह संकट - के समय भी नहीं छूटता और नियमका बन्धन न होवे तो सुदशामें होते हुए भी कभी २ धर्मकृत्य छूट जाता है. इसीप्रकार नियम लेनेहीसे मनुष्यकी धर्म में दृढता होती है. देखो ! दामनी (रस्सी) में बांधनेही से जानवर भी भलीभांति स्थिर रहते हैं. धर्मका जीवन दृढता, वृक्षका जीवन फलं, नदीका जीवन जल,
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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