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________________ (५१२) धन लाभ होवे उसका चतुर्थभाग धर्मकृत्य में, चतुर्थभाग संग्रह में और शेष दो चतुर्थभाग अपने पोषण व नित्यनैमि त्तिकक्रियाओं में लगाना चाहिये । बाल समारना, दर्पण में मुख देखना तथा दांतन और देवपूजा करना इत्यादि कार्य दुपहर - के प्रथम ही कर लेना चाहिये । अपना हित चाहनेवाले मनुष्यने सदैव घरसे दूर जाकर मलमूत्र त्याग करना, पैर धोना तथा झूठन डालना । जो मनुष्य मट्टी के ढेले तोडता है, तृणके टुकडे करता है, दांत से नख उतारता हैं तथा मलमूत्र करनेके अनन्तर शुद्धि नहीं करता है वह इस लोक में अधिक आयु नहीं पा सकता | टूटे हुए आसन पर नहीं बैठना, टूटा हुआ कांसीका पात्र उपयोग में न लेना, बाल बिखरे हुए रखकर भोजन नहीं करना, नम होकर नहीं नहाना, नम होकर नहीं सोना, अधिक समय तक हाथ आदि झूठे न रखना, मस्तक के आश्रयमें सर्व प्राण रहता है अतएव मस्तकको झूठे हाथ नहीं लगाना, मस्तक के बाल नहीं पकडना तथा प्रहार भी नहीं करना । पुत्र अथवा शिष्य के अतिरिक्त शिक्षाके हेतु किसीको ताडना नहीं करना, दोनों हाथों से मस्तक कभी न खजाना तथा अकारण बारम्बार सिर न धोना । ग्रहणके सिवाय रत्रिमें नहाना अच्छा नहीं । इसी प्रकार भोजन के अनंतर तथा गहरे पानी में भी नहीं नहाना | गुरुका दोष न कहना, क्रोधित होने पर गुरुको प्रसन्न करना । तथा गुरुनिन्दा श्रवण नहीं करना ।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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