SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 530
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५०७ ) रुचि रखे, ५० दूसरेका संचित किया हुआ द्रव्य उड़ावे, ५१ मान रख कर राजाके समान डौल बतावे, ५२ लोकमें राजादिककी प्रकट निंदा करे, ५३ दुःख पड़ने पर दीनता प्रकट करे, ५४ सुख आने पर भविष्य में होनेवाली दुर्गतिको भूल जाय, ५५ किंचित् रक्षाके हेतु अधिक व्यय करे, ५६ परीक्षाके हेतु विष खावे, ५७ किमिया करनेमें धन स्वाहा करे, ५८ क्षयरोगी होते हुए रसायन खावे, ५९ अपने आपके बडप्पनका अहंकार रखे, ६० क्रोधवश आत्मघात करने को तैयार होवे, ६९ निरंतर अकारण इधर उधर भटकता रहे, ६२ बाणप्रहार होनेपर भी युद्ध देखे, ६३ बडों के साथ बिरोध करके हानि सहे ६४ धन थोडा होने पर भी विशेष आडंबर रखे, ६५ अपने आपको पंडित समझ कर व्यर्थ बक बक करे, ६६ अपने आपको शूरबीर समझकर किसीका भय न रखे, ६७ विशेष प्रशंसा ( मिथ्या श्लाघा ) कर किसी मनुष्यको त्रास उत्पन्न करे, ६८ हंसी में मर्मवचन बोले, ६९ दरिद्रीके हाथमें अपना धन सोपे ७० लाभका निश्चय न होते खर्च करे, ७१ अपना हिसाब रखनेका आलस्य करे, ७२ भाग्यपर भरोसा रख कर उद्यम न करे, ७३ दरीद्री होकर व्यर्थ बातें करमेनें समय खोवे, ७४ व्यसनासक्त होकर भोजन करना तक भूल जाय, ७५ आप निर्गुणी होकर अपने कुलकी प्रशंसा करे, ७६ स्त्रर कठोर होते हुए गीत गावे, ७७ स्त्रीके भयसे याचकको दान न दे, ७८
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy