SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२९) हुए आपके चरणोंका दर्शन करना हमको उचित है। परंतु ज्ञात नहीं कि हमको जल्दीसे कौन व किस प्रकार यहां लेआया. महाराज ! आपके अहोभाग्यसे यह कोई देवताओंका प्रभाव हुआ मालूम होता है।" यह आश्चर्यकारक घटना देखकर राजा बहुत चकित हुआ और मनमें तर्क करने लगा कि "कदाचित यह इस तोतेके ही वचनका प्रभाव है । मुझे इसका बहुत मान सत्कार करना चाहिये' क्यों कि, इसने मुझ पर अनेक उपकार किये हैं। कहा है कि " प्रत्युपकुर्वन् बहुवपि न भवति पूर्वोपकारिणस्तुल्यः । __एकोऽनुकरोति कृतं निष्कारणमेव कुरुतेऽन्यः ॥१॥ कोई पुरुष अपने ऊपर उपकार करनेवालेका इष्ट कार्य करके कितना ही बदला दे, किंतु वह अपने ऊपर प्रथम उपकार करनेवालेकी कदापि समानता नहीं कर सकता। कारण कि, वह मनुष्य प्रथम उपकार करनेवाली व्यक्तिका उपकार ध्यानमें रख कर उसका अनुकरण करता है । तथा प्रथम उपकार करनेवाला पुरुष तो किसी भी प्रकारके बदलेकी आशा न रखते हुए उपकार करता है।" इस प्रकार विचार करके राजा प्रीतिपूर्वक तोतेकी तरफ देखने लगा, इतनेमें प्रातःकाल के समय सूर्यके प्रकाशसे अदृश्य हुआ बुधका तारा जैसे कहीं नहीं दीखता वैसे ही वह तोता भी देखने में नहीं आया। राजा विचार करने लगा कि "मैं
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy