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________________ (४९३) करनेमें भी अग्रसर हूं." यह सुन चारों अंगुलियोंने मित्रता कर अंगूठेसे पूछा कि, " तेरेमें क्या गुण हैं ? " अंगूठेने कहा. " अलियो ! मैं तो तुम्हारा पति हूं ! देखो, लिखना, चित्र कारी करना, ग्रास भरना, चिमटी भरना, चिमटी बजाना, टचकार करना, मुट्ठी बांधना, गांठ बांधना, हथियार आदिका उपयोग करना, दाढी मूंछ समारना तथा कतरना, कातना, पोंछना, पीजना, बुनना, धोना, कूटना, पीसना, परोसना, कांटा निकालना, गाय आदि दुहना, जपकी संख्या करना, बाल अथवा फूल गूंथना, पुष्पपूजा करना आदि कार्य मेरे बिना नहीं होते. वैसेही शत्रुका गला पकडना, तिलक करना, श्रीजिनेश्वरको अमृतका पान करना,अंगुष्ठप्रश्न करना इत्यादि कार्य अकेले मुझसे ही होते हैं. यह सुन चारों अंगुलियां अंगूठेका आश्रय कर सर्व कार्य करने लगी. (२७) एमाई सयणोचिअमह धम्मायरिअसमुचि भणिमो ॥ भत्तिबहुमाणपुव्वं, तो तिसंझपि पणिवाओ ॥२८॥ अर्थः- स्वजनके सम्बन्धमें उपरोक्त आदि उचितआचरण जानो. अब धर्माचार्यके सम्बन्धमें उचितआचरण कहते हैं. मनुष्यने नित्य तीन वक्त भक्तिपूर्वक शरीर और वचनसे सादर धर्माचार्यको वन्दना करना. ( २८) तहसिअनाईए, आवस्सयपमुहकिच्चकरणं च ॥ धम्मोवएससवणं, तदतिए सुद्धसद्धाए ॥२९॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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