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________________ (४७५) करले, तब उसके साथ वास्तविक प्रेमसे बातचीत करे. उपरोक्त उपाय करने पर भी यदि वह मार्ग पर न आवे तो " उसकी यह प्रकृति ही है" ऐसा तत्त्व समझकर उसकी उपेक्षा करे. (११) " तप्पणइणिपुत्ताइसु, समदिट्ठी होइ दाणसम्माणे ॥ सावक्कमि उ इत्तो, सविसेसं कुणइ सव्वंपि ॥ १२ ॥ अर्थः--भाईके स्त्रीपुत्रादिकमें दान, आदरआदि विषयमें समान दृष्टि रखना, अर्थात् अपने स्त्रीपुत्रादिकी भांति ही उनकी भी आसना वासना करना. तथा सौतेले भाई के स्त्रीपुत्रादिकोंका मानआदि तो अपने स्त्रीपुत्रादिकोंसे भी अधिक रखना. कारण कि, सौतेले भाईके सम्बन्धमें तनिक भी अंतर प्रकट हो तो उनके मन बिगडते हैं, व लोकमें भी अपवाद होता है. इसी प्रकार अपने पितासमान, मातासमान तथा माईसमान लोगोंके सम्बन्धमें भी उनकी योग्यतानुसार उचितआचरण ध्यानमें लेना चाहिये. कहा है कि १ उत्पन्न करनेवाला, २ पालन करनेवाला, ३ विद्या देनेवाला, ४ अन्नवस्त्र देनेवाला और ५, जीवको बचानेवाला, ये पांचों पिता कहलाते हैं. १ राजाकी स्त्री, २ गुरुकी स्त्री, ३ अपनी स्त्रीकी माता, ४ अपनी माता और ५ धायमाता, ये पांचों " माता" कहलाती हैं । १ सहोदर भाई, २ सहपाठी, ३ मित्र, ४ रुग्णावस्थामें शुश्रुषा करनेवाला और ५ मार्गमें बातचीत करके मित्रता करनेवाला, ये पांचों " भाई" कहलाते
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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