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________________ (४६२) पकडे हुए सर्पके मुंहमेंसे विष पड गया था. कार्पटिकके मरजानेसे ब्राह्मणीने अत्यन्त हर्षित होकर कहा कि, "देखो, यह कैसा धर्मीपन !!" उस समय आकाश स्थित हत्याने विचार किया कि, " दाता ( श्रेष्ठी ) निरपराधी है, सर्प अज्ञानी तथा सेमलीके मुखमें जकडा हुआ होनेसे विवश है, सेमलीकी तो जाति ही सर्पभक्षक है तथा ग्वालिन भी इस बातसे अजान है. अतएव मैं अब किसे लगू ? " यह विचारकर वह हत्या अन्तमें वृद्धा ब्राह्मणीको लगी. जिससे वह काली, कुबडी और कोढी होगई......इत्यादि. __सत्यदोष कहने पर एक दृष्टान्त है कि किसी राजाके सन्मुख किसी परदेशीकी लाई हुई तीन खोपड़ियोंकी पंडितोंने परीक्षा करी यथाः- एकके कानमें डोरा डाला वह उसके मुखमेंसे निकला, सुना हो उतना मुखसे बकने वाली उस खोपड़ीकी किमत फूटी कौड़ी बताई. दूसरी खोपड़ीके कानमें डाला हुआ डोरा उसके दूसरे कानमेंसे बाहर निकला. उस एक कानसे सुनकर दुसरे कानसे निकाल देनेवालीकी कीमत एक लक्ष सुवर्णमुद्रा की. तीसरीके कानमें डाला हुआ डोरा उसके गलेमें उतर गया. उस सुनी हुई बातको मनमें रखनेवालीकी कीमत पंडितलोग न कर सके इत्यादि. इसी प्रकार सरलप्रकृतिलोगोंकी हंसी करना, गुणवानलोगोंसे डाह करना, कृतघ्न होना, बहुतसे लोगोंसे विरोध
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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