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________________ ( ४५१ ) raria धारण करनेवाला सेचनक नामक भद्रजातिका हाथी हुआ. जिस समय उसने लाख ब्राह्मगों को जिताया था, उस समय ब्राह्मणों के जीमते बचा हुआ अन्न एकत्रित कर सुपात्रको दान देनेवाला दूसरा एक दरिद्री ब्राह्मण था, वह सुपात्रदान के प्रभाव सौधर्मदेवलोकमें जा, वहांसे च्यवकर पांचसौ राजकन्याओं से विवाह करनेवाला नंदिषेण नामक श्रोणिकपुत्र हुआ. उसे देखकर सेचनकको जातिस्मरण ज्ञान हुआ, तथापि अन्तमें वह प्रथम नरकको गया. -- ३ अन्याय से उपार्जित द्रव्य और सुपात्रदान इन दोनोंके योगसे तीसरा भंग होता है. उत्तमक्षेत्रमे हलका बीज बोने से जैसे अंकुर मात्र ऊगता है, परन्तु धान्य नहीं उपजता, वैसेही इससे परिणाम में सुख होता है, जिससे राजा, व्यापारी और अत्यारम्भसे धनोपार्जन करनेवाले लोगोंको वह मान्य होता है । कहा है कि यह लक्ष्मी काशयष्टि के समान सार व रस रहित होते हुए भी धन्यपुरुषोंने उसे सातक्षेत्रों में बोकर सांटेके समान कर दिया। गायको खली देनेसे उसका परिणाम दूधके रूपमें होता है, और दूध सर्पको देनेसे उसका परिणाम विषके रूप में आता है । सुपात्र तथा कुपात्र में वस्तुका उपयोग करने से ऐसे भिन्न २ परिणाम होते हैं, अतएव सुपात्र ही में करना श्रेष्ठ है । स्वातिनक्षत्रका जल सर्पके मुंहमें पडे तो विष और सीपके संपुटमें पड़े तो मोती होता है। देखो, वही स्वाति
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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