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होती है। ज्ञानीपुरुषने मार्गमें जाते हुए सन्मुख आये हुए रोगी, वृद्ध, ब्राह्मण, अंध, गाय, पूज्यपुरुष, राजा, गर्भिणी स्त्री और सिर पर बोझा होनेसे नमे हुए पुरुषको प्रथम मार्ग देकर फिर आपने जाना चाहिये । पक्व अथवा अपक्व धान्य, पूजने योग्य मंत्रका मंडल, डाल दिया हुआ उबटन, स्नानका जल, रुधिर, मृतक इनको लांघकर न जाना । धुंक, कफ, विष्ठा, मूत्र, प्रज्वलित अनि, सर्प, मनुष्य और शस्त्र इनका तो कदापि उल्लंघन न करना चाहिये । विवेकीपुरुषने नदीके किनारे तक, गायें बांधनेके स्थान तक, बडआदि वृक्ष. तालाब, सरोवर, कुआ, बाग इत्यादिक आवे वहां तक अपने बंधुको पहुंचानेको जाना चाहिये।
कल्याणार्थी पुरुषने रात्रिके समय वृक्षके नीचे न रहना । उत्सव तथा सूतक समाप्त होनेके पहिले किसी दूरदेशमें न जाना । अकेले अपरिचित व्यक्ति अथवा दासके साथ नहीं जाना, तथा मध्यान्ह व मध्यरात्रिके समय भी गमन न करना। क्रूरपुरुष, चौकीदार, चुगलखोर, शिल्पकार और अयोग्यमित्रके साथ अधिक बातचीत न करना तथा असमय इनके साथ कहीं भी न जाना । मार्गमें चाहे कितनी ही थकावट पैदा हो पर पाडा, गाय और गधे पर न बैठना । मार्गमें हमेशां हाथीसे एक हजार, गाडीसे पांच तथा सींगवाले पशु व घोडेसे दश हाथ दूर जाना चाहिये । साथमें कलेऊ (कुछ भी खाद्य पदार्थ)