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________________ (४२१) होता हो, वह व्यवहार, घर, हाट बनवाना, तथा लेना या उनमें रहना आदि सर्व वर्जना । कारण कि किसीको ताप उत्पन्न करनेसे अपनी सुखादि ऋद्धि बढती नहीं है। कहा है किशाठ्येन मित्रं कपटेन धर्म, परोपतापेन समृद्धिभावम् । सुखेन विद्यां परुषेण नारी, वाञ्छन्ति ये व्यक्तमपण्डितास्ते ॥ १ ॥ जो मनुष्य मूर्खतासे मित्रको, कपटसे धर्मको, सुखसे विद्याको और क्रूरपनेसे स्त्रीको वश करना तथा दूसरेको ताप उपजाकर आप सुखी होनेकी इच्छा करते हे, वे मूर्ख हैं। विवेकी पुरुषने जैसे लोग अपने ऊपर प्रीति करते हैं, वैसे ही आपने भी बर्ताव करना चाहिये । कहा है किजितेन्द्रियत्वं विनयस्य कारणं, गुणप्रकर्षो विनया दवा प्यते । गुणप्रकर्षेण जनोऽनुरज्यते, जनानुरागप्रभवा हि संपदः ॥ २॥" ___ इंद्रियां जीतनेसें विनयगुण उत्पन्न होता है, विनयसें सद् गुणोंकी प्राप्ति होती है, सद्गुणोंसे लोगोंके मन में प्रीति उत्पन्न होती है, और लोगोंके अनुरागसे सर्व संपत्ति होती है । विवेकीपुरुषने अपने धनकी हानि, वृद्धि अथवा किया हुआ संग्रह आदि बात किसीके सन्मुख प्रकट न करना, कहा है किचतुरपुरुषने स्त्री, आहार, पुण्य, धन, गुण, दुराचार, मर्म और मंत्र ये आठ वस्तुएं गुप्त रखना चाहिये। कोई अपरिचित व्यक्ति उपरोक्त आठ वस्तुओंका स्वरूप पूछे तो, असत्य न बोलना, परन्तु ऐसा कहना कि, "ऐसे प्रश्नों का क्या प्रयोजन?,"
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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