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________________ (४१६) शारदानंदनका यह वचन सुन राजपुत्रने 'विसेमिरा' इन चार अक्षरों में से प्रथम अक्षर 'वि' छोडदिया. 'सेतु ( रामकी बंधाई हुई समुद्रकी पाल ) देखनेसे तथा गंगा और समुद्रके संगममें स्नान करनेसे ब्रह्महत्या करनेवाला अपने पातकसे छूटता है, परन्तु मित्रको मारने की इच्छा करनेवाला मनुष्य पालको देखनेसे अथवा संगमस्नानसे शुद्ध नहीं होता.' यह दुसरा वचन सुन राजपुत्रने दुसरा 'से' अक्षर छोड दिया मित्रको मारनेकी इच्छा करनेवाला, कृतघ्न, चोर और विश्वासघाती ये चारों व्यक्ति जब तक सूर्य चन्द्र हैं, तब तक नरकगतिमें रहते हैं.' यह तीसरा वचन सुनकर राजपुत्रने तीसरा 'मि' अक्षर छोड दिया. 'राजन् ! तू राजपुत्रका कल्याण चाहता हो तो सुपात्रको दान दे. कारण कि, गृहस्थमनुष्य दान देनेसे शुद्ध होता है. यह चौथा वचन सुनकर राजपुत्रने चौथा 'रा' अक्षर भी छोड दिया पश्चात् स्वस्थ होकर वानर वाघ आदिका वृत्तान्त कहा. राजा परदेके अन्दर बैठे हुए शारदानन्दनको मंत्रीकी पुत्री समझता था, इससे उसने पूछा कि, 'हे बाला! तू ग्राममें रहकर भी जंगलमें हुई वाघ, वानर और मनुष्यकी वार्ता किस प्रकार जानती है ?' तब शारदानन्दनने कहा कि, 'हे राजन् ! देवगुरुके प्रसादसे मेरी जीभमें सरस्वती वास करती है, उससे जैसे मैंने भानुमतीरानीका तिल जाना उसीप्रकार ही यह बात भी मैं जानता हूं.'
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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