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________________ (२०) (कमल सरोवर ) ऐसे हे भगवान् ! आपकी जय हो। सरस भक्तिरससे सुशोभित तथा स्पर्धासे वन्दना करते हुए देवताओं तथा मनुष्योंके मुकुटोंमें जड़े हुए रत्नोंकी कान्तिरूप निर्मल जलसे धुल गये हैं चरण जिनके, तथा समूल नाश कर दिये हैं मनके अन्दर रहे हुए राग द्वेषादिक मल जिनने ऐसे हे भगवन् ! आपकी जय हो । अपार भवसागरमें डूबते हुए जीवोंको किनारे लगानेके लिये जहाज समान, सर्व स्त्रियोंमें श्रेष्ठ सिद्धिरूप स्त्रीके प्रियपति, जरा-मरण-भयसे रहित, सर्व देवोंमें उत्तम ऐसे हे परमेंश्वर, युगादि तीर्थकर, श्रीआदिनाथ भगवन् आपको नमस्कार है।" इस प्रकार स्तुति करके गांगलि ऋषिने सरल स्वभावसे मृगध्वज राजाको कहा कि-"ऋतुध्वज राजाके कुलमें ध्वजाके समान हे मृगध्वज राजन् ! हे वत्स ! तूं मेरे आश्रममें चल, तूं मेरा अतिथि है । मैं आनन्द पूर्वक तेरा अतिथिसत्कार करूंगा। तेरे समान अतिथि तो भाग्य ही से मिलते हैं।" गांगलि ऋषिके ये वचन सुनकर राजा मृगध्वज मनमें विचार करने लगा कि ये ऋषि कौन है ? मुझे आग्रह पूर्वक किस कारण बुलाता है ? और परिचय न होते भी यह मेरा नाम धाम कैसे जानता है ? इत्यादि विचारोंसे आश्चर्ययुक्त होकर वह ऋषिके साथ उनके आश्रम पर गया । ठीक हैसत्पुरुष किसीकी प्रार्थना का अनादर नहीं करते। ऋषिने महाप्रतापी मृगध्वज राजाका भलीभांति अतिथि
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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