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________________ (४०२) कि, काष्ठका आधार मिलने पर तो लोहा व पाषाणआदि भी पानी में तैरते हैं. ऐसा सुनते हैं कि एक भाग्यशाली श्रेष्ठी था. उसका मुनीम बडा ही विचक्षण था. वह भाग्यहीन होते हुए भी श्रेष्ठीके सम्बन्धसे धनवान होगया. जब श्रेष्ठीका देहान्त होगया तब वह भी. पुनः निधन होगया. तदनन्तर वह श्रेष्ठीके पुत्रोंके पास रहने की इच्छा करता था, परन्तु उसे निर्धन जान वे एक अक्षर भी मुंहसे न बोलते थे. तब उसने दो तीन अच्छे मनुष्योंको साक्षी रखकर युक्तिसे श्रेष्ठीकी जूनी बहीमें अपने हाथसे लिखा कि, " श्रेष्ठीके दो हजार टंक मुझे देना है." यह कार्य उसने बहुत ही गुप्त रीतिसे किया. एकसमय इस लेख पर श्रष्ठि-पुत्रोंकी दृष्टि पडी, तब उन्होंने मुनीमसे दो हजार टंककी मांगनी करी. उसने कहा " व्यापारके निमित्त थोडा द्रव्य मुझे दो तो मैं थोडे ही समयमें तुम्हारा कर्ज चुका दूंगा." तदनुसार उन्होंने इसको कुछ द्रव्य दिया. जिससे इसने बहुत द्रव्य सम्पादन किया. तब पुनः श्रेष्ठीपुत्रोंने अपना लेना मांगा तो मुनीमने साक्षी सहित यथार्थ बात कह दी. इस प्रकार श्रेष्ठीपुत्रों के आश्रयसे वह पुनः धनवान होगया. निर्दयत्वमहङ्कारस्तृष्णा कर्कशभाषणम् । नीचपात्रप्रियत्वं च, पञ्च श्रीसहचारिणः ॥१॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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