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खडा हुआ. द्रव्यका परिमाण बहुत संक्षेप किया देखकर श्रीहेमाचार्यजीने उसे मना किया. तब उसने एक लाख द्रम्म तथा उन्हीं अनुसार अन्यवस्तुओंका भी परिमाण रखा. परिमाणसे धनआदि वृद्धि पावे तो उसे धर्मकार्यमें व्यय करना निश्चय किया. धीरे २ कुछ समयमें पांच द्रम्म इकडे हुए. जिससे उसने एक बकरी मोल ले ली. भाग्योदयसे बकरीके गलेमें इन्द्रनील ( मणि ) बंधा था वह आभडने पहिचान लिया. उसके टुकडेकर एक २ के लाख लाख द्रम्म आवे ऐसे माणि बनवाये. जिससे वह पुनः पूर्ववत् धानिक हो गया. तब उसके कुटुम्बके सब मनुष्य भी आगये. उसके घरमेंसे प्रतिदिन साधुमुनिराजको एक घडा भरकर घी वहोराया जाता. प्रतिदिन साधर्मिवात्सल्य, सदाव्रत तथा महापूजा आदि होता था. प्रतिवर्ष दो बार सर्वदर्शनसंघकी पूजा होती थी. नानाप्रकारकी पुस्तकें लिखवाई जाती, जीर्णमंदिरके जीर्णोद्धार होते तथा भगवान्की सुमनोहर प्रतिमाएं भी तैयार होती थीं. ऐसे २ धर्मकृत्य करते आभडकी चौरासी वर्षकी अवस्था होगई. अन्तसमय समीप आया, तब उसने धर्मखातेकी बही पढवाई, उसमें भीमराजाके समयके अट्ठानबे लाख द्रव्यके व्ययका वर्णन सुनकर, उसने खिन्न होकर कहा कि, “ मुझ कृपणने एक करोड द्रम्म भी धर्मकायमें व्यय नहीं किये." यह सुन उसके पुत्रोंने उसी समय दश लाख द्रम्म धर्म-कार्यमें व्यय