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________________ (३८५) तीन प्रकारकी भिक्षा कही है. यथा:--तत्वज्ञ पुरुषोंने १ सर्वसंपत्करी, २ पौरुषत्री, और ३ वृत्तिभिक्षा, इस प्रकार तीन प्रकारकी भिक्षा कही है । गुरुकी आज्ञामें रहनेवाले, धर्मध्यान आदि शुभ-ध्यान करनेवाले और यावज्जीव सर्व आरंभसे निवृत्ति पाये हुए साधुओंकी भिक्षा सर्वसंपत्करी भिक्षा कहलाती है. जो पुरुष पंच महाव्रत अंगीकार करके यतिधर्मको विरोध आवे ऐसी रीतसे चले, उस गृहस्थकी भांति सावध आरंभ करनेवाले साधुकी भिक्षा पौरुषनी कहलाती है. कारण कि, धर्मकी लघुता उत्पन्न करनेवाला वह मूर्ख साधु, शरीरसे पुष्ट होते हुए दीन हो भिक्षा मांगकर उदर पोषण करता है, इससे उसका केवल पुरुषार्थ नष्ट होता है. दरिद्री, अंधा, पंगु (लंगड़ा ) तथा दूसराभी जिनसे कोई धन्धा नहीं हो सकता, ऐसे लोग जो अपनी आजीविकाके निमित्त भिक्षा मांगते हैं उसे वृत्तिभिक्षा कहते हैं. वृत्तिभिक्षामें अधिक दोष नहीं, कारण कि, उसके मांगनेवाले दरिद्रीआदि लोग धर्ममें लघुता नहीं उत्पन्न करते. मनमें दया लाकर लोग उनको भिक्षा देते हैं. इसलिये गृहस्थ व विशेषकर धर्मी श्रावकने न मांगना चाहिये. दूसरा कारण यह है कि, भिक्षा मांगनेवाला गृहस्थ चाहे कितना ही श्रेष्ठ धर्मानुष्ठान करे, तो भी दुर्जनकी मित्रताके समान उससे लोकमें अवज्ञा, निन्दाआदि ही होती है। और जो जीव धर्मकी निन्दा करानेवाला होता है, उसे सम्यक्त्व
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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