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________________ ( ३७४ ) 1 लाभ होता है । वैसे ही जो मनुष्य द्रव्यप्राप्तिके निमित्त पशुरक्षावृत्ति करता हो, उसने मनमें स्थित दयाभाव कदापि न छोडना चाहिये । उस कार्य में सब जगह जागृत रह कर छविच्छेद - - खस्सी करन', नाक बींधना आदि त्यागना । शिल्पकला सौ प्रकारकी है, कहा है कि- कुंभार, लोहार चित्रकार, सुतार और नाई ये पांच शिल्प मुख्य हैं। पश्चात् इन प्रत्येक बीस २ भेद मिलकर सौ भेद होजाते हैं । प्रत्येक मनुष्यकी शिल्पकला एक दूसरेसे पृथक् होनेसे पृथक् २ गिनी जावे तो अनेकों भेद होजाते हैं । आचार्यके उपदेशसे हुआ वह शिल्प कहलाता है । उपरोक्त पांच शिल्प ऋषभदेव भगवान के उपदेशसे चले आ रहे हैं। आचार्यके उपदेश बिना जो केवल लोकपरंपरा से चला हुआ खेती, व्यापार आदि है, वह कर्म कहलाता है । सिद्धांत में कहा है कि- आचार्य के उपदेशसे हुआ वह शिल्प और उपदेशसे न हुआ वह कर्म कहलाता है । कुंभारका, लुहारका चित्रकारका इत्यादि शिल्पके भेद हैं. खेती व्यापार आदि कर्मके भेद हैं. खेती व्यापार और पशुरक्षावृत्ति ये तीन कर्म यहां प्रत्यक्ष कहे, शेष कर्मोंका प्रायः शिल्पआदि में समावेश हो जाता है। पुरुषोंकी तथा स्त्रीयोंकी कलाएं कितनी ही विद्या में तथा कितनी ही शिल्पमें समा जाती हैं। कर्म के सामान्यतः चार प्रकार हैं । कहा है कि , उत्तमा बुद्धिकर्माणः, करकर्मा च मध्यमः । अधमा : पादकर्माणः, शिरःकर्म ऽधमाधमः ॥ १ ॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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