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________________ (३५३) उत्तर दिया कि 'भय पाये हुए मनुष्यको विषयभोग अच्छे नहीं लगते.' कृष्णने पूछा 'मेरे होते हुए तुझे किसका भय है ? ' उसने उत्तर दिया. 'मृत्युका' तदनंतर स्वयं कृष्णने उसका दीक्षा उत्सव किया. थावच्चापुत्रने एक सहस्र श्रेष्ठीआदिके साथ दीक्षा ली. अनुक्रमसे वह चौदहपूर्वी हुआ, और सेलक राजा तथा उसके पांचसौ मंत्रियोंको श्रावक कर सौगंधिका नगरीमें आया. उस समय व्यासका पुत्र शुकनामक एक परिब्राजक अपने एक हजार शिष्यों सहित वहां था. वह त्रिदंड, कमंडलु, छत्र, त्रिकाष्ठी, अंकुश, पवित्रक और केशरी नामक वस्त्र इतनी वस्तुएं हाथमें रखता था. उसके वस्त्र गेरूसे रंगे हुए थे. वह सांख्यशास्त्रके सिद्धान्तानुसार चलनेवाला होनेसे प्राणातिपातविरमणादि पांच यम (व्रत) और शौच (पवित्रता ), संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वरप्रणिधान यह पांच नियम मिलकर दश प्रकारके शौचमूल परिव्राजक धर्मकी तथा दानधर्मकी प्ररूपणा करता था. पहिले उसने सुदर्शन नामक नगर सेठसे अपना शौचमूल धर्म अंगीकार कराया था. थावच्चापुत्रआचार्यने उसीको पुनः प्रतिबोध कर विनयमूल जिनधर्म अंगीकार कराया. पश्चात् सुदर्शनश्रेष्ठीके देखते हुए शुकपरिब्राजक व थावच्चापुत्रआचार्यमें परस्पर इस प्रकार प्रश्नोत्तर हुए।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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