SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३४५) चार लोगस्सका कायोत्सर्ग करे. पश्चात् सज्झाय संदिसाहु ? और सज्झाय करूं ?, इस रीतिसे आदेश मांगकर दो खमासमण देकर सज्झाय करे. यह संध्यासमयकी वंदनविधि है । गुरुके किसी काममें व्यग्र होनेसे जो द्वादशावर्त वन्दना करनेका योग न आवे तो थोभवन्दन ही से गुरुको वन्दना करना. तथा वन्दना करके गुरुके पास पच्चखान करना. कहा है कि- जो स्वयं पहिले पच्चखान किया हो वही अथवा उससे अधिक गुरुसाक्षीस ग्रहण करना. कारण कि, धर्मके साक्षी गुरु है. धर्मकार्य गुरु साक्षीसे करनेमें इतने लाभ हैं कि, एक तो 'गुरुसक्खिओ उ धम्मो' (गुरुसाक्षीस धर्म होता है ) जिनेश्वर भगवानकी आज्ञाका पालन होता है, दूसरा गुरुके वचनसे शुभ परिणाम उत्पन्न होनेसे अधिक क्षयोपशम होता है, तीसरा पूर्व धारा हो उससे भी अधिक पच्चखान लिया जाता है । ये तीन लाभ हैं । श्रावकप्रज्ञप्तिमें कहा है कि संतमिवि परिणामे गुरुमूलपवज्जणमि एस गुणो । दढया आणाकरण, कम्मखओवसमवुड्डी अ ॥ १ ॥ प्रथम ही से पच्चखानआदि लेनेके परिणाम होवें तो भी गुरुके पास जानेमें यह लाभ है कि, परिणामकी दृढता होती है, भगवानकी आज्ञा का पालन होता है और कर्मके क्षयोपशमकी वृद्धि होती है. ऐसे ही दिनके अथवा चातुर्मासके नियमादि भी योग होवे तो गुरु साक्षी ही से ग्रहण करना....
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy