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________________ ( ३३७ ) आदि वस्तुएं बेचने से उपजी हुई रकम में से पुष्प, भोग ( केशर चंदन, आदि वस्तु) अपने घरदेरासर में न वापरना; और दूसरे जिनमंदिर में भी स्वयं भगवान् पर न चढाना, बल्कि सत्य बात कह कर पूजक लोगों के हाथसे चढाना । जिनमंदिर में पूजकका योग न होवे तो सब लोगों को उस वस्तुका स्वरूप स्पष्ट कह कर स्वयं भगवान् पर चढावे । ऐसा न करनेसे, निज खर्च न करते मुफ्त में लोगों से अपनी प्रशंसा करानेका दोष आता है । घरदेरासरकी नैवेद्य आदि वस्तु मालीको देना, परन्तु यह उसके मासिक पगारकी रकम में न गिनना । जो प्रथम ही से मासिक पगार के बदले नैवेद्यआदि देनेका ठेराव किया हो, तो कुछ भी दोष नहीं । मुख्यतः तो मालीको मासिक वेतन पृथक ही देना चाहिये । घरदेरासर में भगवान के सन्मुख रखे हुए चावल, नैवेद्य आदि वस्तुएं बडे जिनमंदिरमें रखना, अन्यथा 'घरदेरासरकी वस्तु ही से घरदेरासरकी पूजा करी, परन्तु निजीद्रव्यसे नहीं करी । ' ऐसा होकर अनादर, अवज्ञा आदि दोष भी लगता है; ऐसा होना योग्य नहीं । अपने शरीर, कुटुम्ब आदिके निमित्त गृहस्थ मनुष्य कितना ही द्रव्य व्यय कर देता है । अतः जिनमंदिरमें जिनपूजा भी शक्तिके अनुसार निजीद्रव्य ही से करनी चाहिये, अपने घरदेरासर में भगवान् के सन्मुख धरी हुई नैवेद्यादि वस्तु बेचकर उत्पन्न हुए द्रव्य से अथवा देवद्रव्य संबंधी फूल आदि वस्तुसे
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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