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________________ ( ३३३) ही मंदिरमें पृथक् जल रखा हो, तो उस जलसे हाथ पैर धोने में हरकत नहीं. छाबडियां, चंगेरी, ओरसिया आदि तथा चंदन, केशर, कपूर, कस्तूरी आदि वस्तु अपनी निश्रास रख कर ही देवकार्यमें वापरना; देवकी निश्रासे कभी न रखना. कारण किं देवकी निश्रासे न रखी होवे तो प्रयोजन पड़ने पर वह घरके कार्यमें ली जा सकती है। इसी प्रकार भेरी, झालर आदि वाजिंत्र भी साधारणखाते रखे होवें तो वे सर्व धर्मकृत्योंमें उपयोगमें लिये जा सकते हैं। अपनी निश्रासे रखी हुई तंबू , पडदाआदि वस्तुएं देवमंदिरमें वापरनेको रखे हों तो भी उस कारणसे वह वस्तु देवद्रव्य नहीं मानी जाती. कारण कि, मनके परिणाम ही प्रमाणभूत हैं। ऐसा न हो तो, अपने पात्र में रखा हुआ नैवेद्य भगवान् के सन्मुख रखते हैं, इससे वह पात्र भी देवद्रव्य मानना चाहिये। श्रावकने देरासरखातेकी अथवा ज्ञानखातेकी घर, हाट आदि वस्तु भाडा देकर भी न वापरना चाहिये । कारण कि, उससे निश्शूकता (बेदरकारी) आदि दोष होता है । साधारणखातेकी वस्तु संघकी अनुमतिसे वापरना तो भी लोक व्यवहारकी रीतिके अनुसार कम न पडे इतना भाडा देना, और वह भी कही हुई मुद्दतके अंदर स्वयं ही जाकर देना। उसमें जो कभी उस घरकी भीत, पाट आदि पूर्वके हों, उनके गिरजाने पर पुनः ठीक करवाने पडे तो जो कुछ खर्च होवे, वह भाडेमेंसे काट लेना, कारण कि ऐसा लोकव्यवहार है। परन्तु
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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