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________________ ( १२ ) की हुई भींत चित्रकारीके, मजबूत चुना हुआ पाया ( नींव ) महल बांधनेके और तपाकर शुद्ध किया हुआ सोना माणिक्यरत्नके योग्य है वैसे ही श्रावकधर्म पानेके योग्य है । तथा वही मनुष्य सद्गुरूआदि सामग्रीके योगसे चुल्लक आदि दश दृष्टान्तसे दुर्लभ ऐसे समकितादिकको पाता है । और उसे इस प्रकार पालता है जैसा कि शुकराजने पूर्वभवमें पाला था। शुकराजकी कथा. इसी भरतक्षेत्रमें असीम धन धान्यसे परिपूर्ण क्षितिप्रतिष्ठित नामक एक प्रसिद्ध नगर था । इस नगरमें निस्त्रिंशता (क्रूरता ) केवल खड्गमें, कुशीलता (लोहे फल) केवल हलमें, जडता केवल जलमें और बंधन (बीट ) केवल पुष्पमें ही था, किन्तु नगरवासियोंमें से कोई भी क्रूर, कुशील, जड अथवा बंधनमें पड़ा हुआ नहीं दृष्टिमें आता था। इसी नगरमें कामदेवके सदृश रूपवान व अग्निके समान शत्रुओंका संहार करनेवाला ऋतुध्वजराजाका पुत्र मृगध्वज राजा राज्य करता था । राज्यलक्ष्मी, न्यायलक्ष्मी तथा धर्मलक्ष्मी इन तीनों स्त्रियोंने बड़ी प्रसन्नतासे स्वयं अपनी इच्छासे उस राजासे पाणीग्रहण किया था। एक समय वसन्तऋतुमें, जिस समय कि प्रायः मनुष्य खेल क्रीडा ही का रसआस्वादन करते रहते हैं, उस वक्त मृगध्वज राजा अन्तःपुरके परिवार सहित नगरके उद्यान ( बगीचा ) में क्रीडा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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