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________________ ( ८ ) ही सरदार- पुत्रके घर में आग लग गई । परन्तु इस मूर्ख लडकेने बडी ही देर बाद एकान्त पाकर सरदार- पुत्र के कान में यह खबर दी, तब तक मकान जल कर भस्म हो चुका था । सरदारपुत्रने फिर समझाया कि “ यदि ऐसा मौका आ जाय तो धूम देखते ही स्वतः मिट्टी पानी पटकना चाहिये" इसी प्रकार एक दिन सरदार पुत्र स्नान करनेके पश्चात् अपने बालोंको सुगन्धित धूप दे रहा था, इस लडकेने ज्योंही धुआं उठता देखा त्योंही अपने मालिक के सिर पर गोवर, मिट्टी आदिका टोकना डालकर पानी पटक दिया । अन्त में विवश होकर सरदार पुत्रने इसे नौकरी से अलग कर दिया । सारांश यह कि ऐसे मूर्ख-पुरुषोंको प्रतिबोध होना शक्य नहीं । ४ पूर्वव्युद्रा हित में गोशालके नियतिवादमें ed किये हुए नियतिवादी इत्यादिका दृष्टान्त समझना चाहिये । उपरोक्त चारों पुरुष धर्मके अयोग्य है । परन्तु आर्द्रकुमारादिककी भांति जो पुरुष मध्यस्थ होवे अर्थात् जिसका किसी मत पर राग द्वेष नहीं, वही व्यक्ति धर्म पानेके योग्य है। इसी कारण मूल गाथा में भी ' भद्रप्रकृति' ही धर्म योग्य है यह कहा है । २ इसी भांति विशेष निपुणमति अर्थात् हेय ( त्याग करने योग्य) और उपादेय ( आदर करने योग्य ) वस्तुओं में क्या तत्र है ? यह जान लेने में जो निपुण हो वही धर्मके योग्य है । ३ तथा व्यवहारकी शुद्धि रखना आदि न्यायमार्ग ऊपर जिसकी पूर्ण अभिरुचि हो बल्कि अन्याय मार्ग ऊपर बिलकुल
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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