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करनेवाली प्रीतिमती रानी अनुक्रमसे सुलसाश्राविकाके समान होगई । हंसकी वाणीका मानो यह कोई महान् चमत्कारिक गुण है । अस्तु; एक समय राजधर राजाके चित्तमें ऐसी चिन्ता उत्पन्न हुई कि, " अभी तक पट्टरानीको एक भी पुत्र नहीं हुआ, और अन्य रानियोंके तो सैकडों पुत्र हैं । इसमें राज्यक योग्य कौनसा पुत्र होगा ? " राजा इस चिन्तामें था, इतने ही में रात्रिको स्वप्नमें मानो साक्षात् ही हो ! ऐसे किसी दिव्यपुरुषने आकर उसे कहा कि, " हे राजन् ! अपने राज्यके योग्य पुत्रकी तू कुछ भी चिन्ता न कर । जगत्में कल्पवृक्षके समान फलदायक ऐसे केवल जिनधर्म ही की तू आराधना कर । जिससे इसलोक परलोकमें तेरी इष्ट सिद्धि होगी।" ऐसा स्वम देखनेसे राजधर राजा पवित्र हो हर्षसे जिन पूजाआदिसे जिनधर्मकी आराधना करने लगा। ऐसा स्वम देखनेपर भला कौन आलस्यमें रहे ? पश्चात् कोई उत्तम जीवने, हंस जैसे सरोवरमें अवतार लेता है, वैसे ही प्रथम अरिहंतकी प्रतिमा स्वममें बताकर प्रीतिमतीके गर्भ में अवतार लिया। इससे सर्वलोगोंके मनमें अपार हर्ष हुआ । गर्भके प्रभावसे प्रीतिमती रानीको मणिरत्नमय जिन-मंदिर तथा जिन-प्रतिमा कराना तथा उसकी पूजा करना इत्यादि दोहला उत्पन्न हुआ। फूल फलके अनुसार हो उसमें क्या विशेषता है ?
१ गर्भवती स्त्रीको गर्भावस्थाके समय जो इच्छा उत्पन्न होती है उसे दोहला कहते हैं।