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________________ (२६२) दूसरेने विधिमें कुछ कसर की जिससे चांदी हुई । इसलिये सर्व कार्योंमें विधि भली भांति जानना चाहिये व अपनी सर्वशक्तिसे उसे ( विधि ) को निबाहना चाहिये। . ____ पूजाआदि पुण्यक्रिया करनेके अनंतर सर्वकाल विधिकी कोई आशातना हुई होवे, उसके लिये मिथ्यादुष्कृत देना । पूर्वाचार्य अंमपूजादि तीन पूजाओंका फल इस रीतिसे कहते हैं. प्रथम अंगपूजा विघ्नकी शांति करनेवाली है, दूसरी अग्रपूजा अभ्युदय करनेवाली है और तीसरी भावपूजा निर्वाणकी साधक है । इस भांति तीनो पूजाएं नामके अनुसार फल देनेवाली हैं । यहां पूर्वोक्त अंगपूजा तथा अग्रपूजा और चैत्य कराना, उनमे जिनबिंबळ स्थापना कराना, तीर्थ यात्रा करना इत्यादि सर्व द्रव्यस्तव है। कहा है कि जिणभवणबिंबठवणाजत्तापूआइ सुत्तओ विहिणा । दव्वत्थओत्ति नेअं, भावत्थयकारणत्तण ॥ १ ॥ जिनमंदिरकी और जिनबिंबकी प्रतिष्ठा, यात्रा, पूजा आदि धर्मानुष्ठान सूत्रोंमे कही हुई विधिके अनुसार करना । ये सर्व यात्रा आदि द्रव्यस्तव हैं ऐसा जानना, कारण कि, ये भावस्तवके कारण हैं । यद्यपि संपूर्ण पूजा प्रतिदिन परिपूर्णतया नहीं की जा सकती, तथापि अक्षत दीप इत्यादि देकर नित्य पूजा करना । जलका एकबिंदु महासमुद्रमें डालनेसे वह जैसे अक्षय हो जाता है, वैसे ही वीतरागमे पूजा अर्पण करें
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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