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________________ (२५४) काम, कायासे बन सके ऐसा हो तो सामायिक पाल ( छोड ) कर करे। शंकाः सामायिक छोडकर द्रव्यस्तव करना किस प्रकार उचित हो सकता है ? समाधान - ऋद्धि रहित श्रावकसे सामायिक करना अपने हाथमे होनेसे चाहे उसी वक्त बन सकता है। परंतु मंदिरका कार्य तो समुदायके आधीन होनेसे किसी २ समय ही करनेका प्रसंग आता है, अतएव प्रसंग आने पर उसे करनेसे विशेष पुण्यका लाभ होता है । आगममे कहा है कि "जीवाण बोहिलाभो, समदिट्ठीण होइ पिअकरणं । आणा जिणि भत्ती, तित्थस्स पभावणा चेव ॥ १॥" (द्रव्यस्तवसे) भव्यजीवोंको बोधिलाभ होता है, सम्यग्दष्टिजीवों का प्रिय किया ऐसा होता है, भगवान्की आज्ञाका पालन होता है, जिनेश्वरभगवानकी भक्ति होती है और शासनकी प्रभावना होती है, इस तरह द्रव्यस्तव में अनेक गुण हैं, अतएव वही करना चाहिये । दिनकृत्यसूत्रमें भी कहा है किः-- इस प्रकार यह सर्व विधि ऋद्धिवन्त श्रावककी कही । सामान्य श्रावक तो अपने घर ही पर सामायिक लेकर जो किसीका देना न होवे, और किसीके साथ विवाद न होवे तो साधुकी भांति उपयोगसे जिनमंदिरको जावे ।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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