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________________ ( २५२) प्रतिमाओंमे तीर्थकरका आकार है, जिससे " यह तीर्थकर है " . ऐसी बुद्धि उत्पन्न होती है । ऐसा न करते अपने कदाग्रहसे अरिहंतकी प्रतिमाकी भी अवज्ञा करते हैं तो बलात्कार दुरंत संसाररूप दंड भोगना पडता है, जो ऐसा करे तो अविधिसे करी हुई प्रतिमाकी भी पूजन करनेका प्रसंग आता है, जिससे अविधिकृत प्रतिमामें अनुमति देनेसे भगवान्की आज्ञाभंग करनेका दोष आता है ऐसा कुतर्क नहीं करना, कारण कि सभी प्रतिमाको माननेका आगममें प्रमाण है । श्रीकल्पभाष्यमें कहा है कि निस्सकड़मनिस्तकडे, चेइए सव्वहिं थुई तिन्नि । वेलं च चेइआणि अ, नाउं इक्किक्किआ वावि ॥१॥ अर्थः---निश्राकृत अर्थात् गच्छप्रतिबद्ध और अनिश्राकृत अर्थात् गच्छातिबन्ध रहित ऐसे चैत्यमें सब जगह तीन स्तुति कहना । यदि सब जगह तीन स्तुति कहते समय जाता रहता होवे तो, अथवा वहां चैत्य बहुत हों तो समय और चैत्य इन दोनोंका विचार करके प्रत्येक चैत्यमें एक २ स्तुति भी कहना । . चैत्यमें जो मकडीके जाले आदि हो जायँ तो उन्हें निकालनेकी विधी कहते हैं। सीलेह मंखफलए, इयरे चोइति तंतुमाईसु । अभिजोति सवित्तिसु, अणिच्छ फेडंतऽसीसंता ॥१॥ अर्थः-साधु, मंदिरमें मकडीके जाले आदि होवें तो मंदिरकी सम्हाल करनेवाले अन्य गृहस्थी लोगों को प्रेरणा करे,
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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