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________________ (२४१) मुख करे तो उस मनुष्यकी संतति बृद्धि नहीं पाती। अग्निकोण तरफ मुख करके पूजा करे, उस मनुष्यकी दिन प्रतिदिन धनहानि होती है। वायव्यकोण तरफ मुख करे, तो संतति नहीं होती। नैऋत्यकोण तरफ मुख करे, तो कुल क्षय होता है और ईशानकोण तरफ मुख करे तो बिलकुल संतति नहीं होती है। प्रतिमाके दो पग, दो घुटने, दो हाथ, दो कंधे और मस्तक इन नों अंगोंकी अनुक्रमसे पूजा करना । श्रीचंदन विना किसी समय भी पूजा न करना, कपाल, कंठ, हृदय, कंधे और पेट (उदर) इतनी जगह तिलक करना । नव तिलकसे हमेशां पूजा करना। ज्ञानीपुरुषोंने प्रभातकालमें प्रथम वासपूजा करना, मध्याह्नसमयमें फूलसे पूजा करना और संध्यासमयमें धूपदीपसे करना । धूप भगवान की बाई ओर रखना । अग्रपूजामें रखते हैं वे सब वस्तुएं भगवानके सन्मुख रखना । भगवानकी दाहिनी ओर दीप रखना । ध्यान तथा चैत्यवंदन भगवानकी दाहिनी ओर करना । हाथसे गिरा हुआ, वृक्षपरसे भूमि पर पड़ा हुआ, किसी तरह पांवको लगा हुआ, सिरपर उठाकर लाया हुआ, खराब वस्त्रमें रखा हुआ, नाभिसे नीचे पहिरे हुए वस्त्र आदिमें रखा हुआ, दुष्टमनुष्योंका स्पर्श किया हुआ बहुत लोगों द्वारा उठा धरीसे खराब किया हुआ और कीडियोंका काटा हुआ ऐसा फल, फूल तथा पत्र भक्तिसे जिनभगवानकी प्रीतिके धारण करणके निमित्त नहीं चढाना। एकफूल के दो भाग नहीं करना ।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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