________________
(२२२) चितपनका प्रसंग आता है। यहां जिणहा श्रेष्ठिका दृष्टान्त कहते हैं
धोलका नगरमें जिणहा नामक अतिदरिद्री श्रेष्ठी रहता था। वह घीके मटके, कपासकी गांठे आदि बोझ उठाकर अपना निर्वाह करता था । भक्तामरप्रमुखस्तोत्रके स्मरणसे प्रसन्न हुई चक्रे. श्वरीदेवीने उसको एक वशीकरण रत्न दिया । उस रत्नके प्रभावसे जिणहाने मार्गमें रहने वाले तीन प्रसिद्ध दुष्टचोरोंको मार डाला। वह आश्चर्यकारी वृत्तान्त सुन पाटणके भीमदेवराजाने आदर सहित उसे बुलाकर देशकी रक्षाके लिये एक खड्ग दिया, तब शत्रुशल्य नामक सेनापतिने डाहवश कहा कि
ग्वांडो तासु समप्पिड़, जसु खांडे अभ्यास ।
जिणहा इक्कुं समप्पिइ, तुल चेलउ कप्पास ।। १॥ खड्ग उसीको देना चाहिये कि, जिसे उसका अभ्यास होवे । जिणहाको तो घी तेलके मटके वस्त्र और कपास ये ही देना चाहिये १।
यह सुन जिणहाने उत्तर दिया किअसिधर धणुधर कुंतधर, सत्तिघरा अ बहू य । सत्तुसल रणि जे शूर नर,जणणी ति विरल पसूअ॥२॥
अश्वः शस्त्रं शास्त्रं वाणी वीणा नरश्च नारी च ।
पुरुषविशेष प्राप्ता भवन्त्ययोग्याश्च योग्याश्च ॥ २ । तलवार, धनुष्य और भालेको पकडनेवाली तो संसारमें बहुत व्यक्ति हैं,परन्तु शत्रुओंके शल्यरूप ऐसे हे सेनानि रणभूमिमें शूरवीर पुरुषोंको प्रसव करनेवाली तो कोई कोई ही माता होती है ।