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________________ ( २२० ) विलेपन करना, आंगीआदिकी रचना करना, गोरोचन, कस्तूरीआदि द्रव्यसे तिलक तथा पत्रवल्ली ( पील ) आदि की रचना करना, सर्वोत्कृष्ट रत्नजडित स्वर्ण तथा मोतीके आभूषण और सोने चांदी के फूल आदि चढाना । जैसे कि श्रीवस्तुपालमंत्री ने अपने बनवाये हुए सवालाख जिनबिम्ब पर तथा श्री सिद्धाचलजी ऊपर आई हुई सर्व प्रतिमाओं पर रत्नजडित सुवर्णके आभरण चढाये, तथा जैसे दमयंतीने पूर्वभव में अष्टापद तीर्थ पर आई हुई चौबीस प्रतिमाओं पर रत्नके तिलक चढाये, वैसे ही सुश्रावकने जिस प्रकार से अन्य भव्यप्राणियों - के भाव वृद्धिको प्राप्त हों उस प्रकारसे आभरण चढाना | कहा हैं कि पवरेह साहिं, पायं भावोवि ज यए परो । न य अन्नो उवओगो, एएसि सयाण लट्ठयरो || १ || प्रशंसनीय साधनों से प्रायः प्रशंसनीय भाव उत्पन्न होते हैं । प्रशंसनीय साधनोंका इसके अतिरिक्त अन्य उत्तम उपयोग नहीं । तथा पहेरावणी, चन्द्रोदय आदि नानाविधि दुकूलादि वस्त्र चढाना, श्रेष्ठ, ताजा और शास्त्रोक्त विधिके अनुसार लाये हुए शतपत्र ( कमलकी जाति ), सहस्रपत्र ( कमलविशेष ), जाइ, केतकी, चंपा आदि फूलोंकी गुंथी हुई, घिरी हुई, पूरी हुई तथा एकत्रित की हुई ऐसी चार प्रकारकी माला, मुकुट, शिखर, फूलघर आदिकी रचना करना, जिनेश्वर भगवान के
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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