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________________ ( २१७ ) 1 इत्यादिका मन में चिन्तवन करना | पश्चात् यतना पूर्वक बालाकुंची जिनबिम्ब ऊपर के चन्दनादिक उतार पुनः प्रक्षाल करके दो अंगलूहणोंसे ( अंगपूंछनेका वस्त्र ) जिनबिम्ब ऊपरका सर्व पानी पोंछ लेना पश्चात् पांव के दो अंगूठे, दो घुटने, हाथ की दो कलाई, दो कंधे और मस्तक इतने स्थानकी अनुक्रमसे पूजा करना, ऐसा कहा है अतः आमे वर्णन किया जायगा उसके अनुसार सीधे क्रमसे नवों अंगोंमें चंदन, केशार आदि वस्तुओं से पूजा करे । कोई २ आचार्य कहते हैं कि प्रथम कपाल पर तिलक कर पश्चात् नवाङ्गकी पूजा करना । श्रीजिनप्रभसूरने करी हुई पूजाकी विधि में तो सरस और सुगन्धित चंदनसे भगवानका दाहिना घुटना, दाहिना कंधा, कपाल बांया कन्धा और बांया घुटना इन पांच अथवा हृदय सहित छः अंग में पूजा कर ताजा फल और वासक्षेप इन दो द्रव्योंसे पूजा करे, ऐसा कहा है । जो पहिले क़िसीने पूजा करी होवे, और अपने पास पहिली पूजासे श्रेष्ठ होवे तो वह पूजा दूर नहीं करना, कारण कि उस ( सुंदर ) पूजाके दर्शन से भव्यजीवों को होने वाले पुण्यानुबंध पुण्य के अनुबंधको अन्तराय करनेका प्रसंग आता है । अतएव पहिली पूजा न उतार कर अपने पासकी सामग्री से उसे बढाना । बृहद्भाष्य में कहा है कि जो प्रथम किसीने बहुतसा द्रव्यव्यय करके पूजा करी होवे, तो वही पूजा जिस तरह विशेष शोभा I पूजा करनेकी सामग्री न , —
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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