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________________ ( २०३ ) पूजावसर में सप्त प्रकारकी शुद्धि. वैसे ही स्वयं उत्तम स्थानसे, अथवा स्वयं जिसके गुणका ज्ञाता हो ऐसे अच्छे मनुष्यसे पात्र, ढक्कन, लानेवाली व्यक्ति, मार्ग आदि सर्वकी पवित्रताकी यतना रखना आदि युक्तिसे पानी, फूल इत्यादिक वस्तु लाना । फूल आदि देने वालेको यथोचित मूल्य आदि देकर प्रसन्न करना | वैसे ही, श्रेष्ठ मुखकोश बांध, पवित्र भूमि देख युक्तिसे जिसमें जीवकी उत्पत्ति न होवे ऐसी केशर, कर्पूर आदि वस्तुसे मिश्रित चंदन घिसना | चुने हुए तथा ऊंचे अखंड चांवल, शोधित धूप व दीप, सरस स्वच्छ नैवैद्य तथा मनोहर फल इत्यादि सामग्री एकत्रित करना । यह द्रव्यशुद्धि है । राग द्वेष, कषाय ईर्ष्या, इस लोक तथा परलोककी इच्छा, कौतुक तथा चित्तकी चपलता इत्यादि दोष त्याग कर चित्तकी एकाग्रता रखना, सो भावशुद्धि है । कहा है कि मनोवक्कायवस्त्रोवपूजोपकरणस्थिते: । शुद्धिः सप्तविधा कार्या, श्री अर्हत्पूजनक्षणे ॥ १ ॥" मन, वचन, काया वस्त्र, भूमि, पूजाके उपकरण और स्थिति ( आसन आदि ) इन सातोंकी शुद्धि भगवानकी पूजा करते समय रखना चाहिये । इस भांति द्रव्य तथा भावसे शुद्ध हुआ मनुष्य गृह चैत्य ( घरमंदिर ) में प्रवेश करे, कहा है कि-- पुरुष दाहिना
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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