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________________ (१९६) होते हैं, और जल ही में मृत्युको प्राप्त होते हैं; परन्तु मनका मेल नहीं धुलनेसे वे स्वर्गमें भी नहीं जाते । जिनका चित्त शमदमादिकसे, मुख सत्यवचनसे और शरीर ब्रह्मचर्यसे शुद्ध है, वे गंगानदीको गये विना भी शुद्ध ही है । जिनका चित्त रागादिकसे वचन असत्यवचनसे और शरीर जीवहिंसादिकसे मलीन हो, उन पुरुषोंसे गंगा नदी भी अलग रहती है। जो पुरुष परस्त्रीसे, परद्रव्यसे और दूसरे के परद्रोहसे दूर रहता है, उसको लक्ष करके गंगा नदी भी कहती है कि- ये महानुभाव कब आकर मुझे पवित्र करेंगे? इसके ऊपर एक कुलपुत्रका दृष्टान्त है, यथाः तुम्ब स्नान दृष्टांत. एक कुलपुत्र गंगादि तीर्थको जाता था। उसे उसकी माताने कहा कि, "हे वत्स! तू जहां नहावे, वहां मेरे इस तुम्बेको भी नहलाना." यह कह उसकी माताने उसे एक तुम्बा दिया । कुलपुत्र भी गंगा आदि तीर्थमें जाकर माताकी आज्ञानुसार अपने साथ तुम्बेको नहला कर घर आया। तब माताने उस तुम्बेका शाक बनाके पुत्रको परोसा । पुत्रने कहा, "बहुतही कड्डुवा है." माताने कहा--"जो सैकडों बार नहलानेसे भी इस तुम्बेका कडुवापन नहीं गया, तो स्नान करनेसे तेरा पाप किस प्रकार जाता रहा ? वह ( पाप ) तो तपस्यारूप क्रियानुष्ठान ही से जाता है ।" माताके इन वचनोंसे कुलपुत्रको प्रतिबोध हुआ।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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