________________
( १९४ )
नहीं । स्त्रीसंग किया होवे, उलटी हुई होवे, स्मशान में चिताका धुंआ लगा होवे, बुरा स्वप्न आया होवे और हजामत कराई होवे तो छाने हुए शुद्ध जलसे नहाना चाहिये ।
तैल मर्छन, स्नान और भोजन कर तथा आभूषण पहर लेने के बाद, यात्रा तथा संग्रामके अवसर पर, विद्यारंभ में, रात्रिको, संध्या के समय, किसी पर्व के दिन तथा ( एकबार हजामत कराने के बाद ) नवमें दिन हजामत नहीं कराना चाहिये । पखवाडे में एकबार दाढी, मूछ, सिरके बाल तथा नख निकलवाना, परन्तु श्रेष्ठ मनुष्यों को चाहिये कि अपने हाथ से अपने बाल तथा अपने दांतसे अपने नख कभी न निकाले ।
जल स्नान (जलसे नहाना ) शरीरको पवित्र कर, सुख उत्पन्न कर परम्परासे भावशुद्धिका कारण होता है. श्रीहरिभद्रसूरिजीने दूसरे अष्टकमें कहा है कि प्रायः अन्य त्रस आदि जीवोंको उपद्रव न हो, उस भांति शरीरके त्वचा ( चर्म ) - आदिभाग की क्षणमात्र शुद्धिके निमित्त जो पानी से नहाया जाता है, उसे द्रव्यस्नान कहते हैं । सावध व्यापार करनेवाला गृहस्थ यह द्रव्यस्नान यथाविधि करके देव व साधुकी पूजा करे तो उसे यह स्नान भी शुद्धिकारक है। कारण कि, यह द्रव्यFort भावशुद्धिका कारण है और द्रव्यस्नान से भावशुद्धि होती हैं यह बात अनुभव सिद्ध है । अत एव द्रव्यस्नान में कुछ अपूकायविराधनादि दोष हैं, तो भी अन्य समकितशुद्धि आदि अनेक