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देखनेके लिये अथवा मंगलके हेतु दर्पणमें मुख देखा जाता है। जो अपना शरीर दर्पणमें मस्तक रहित. दृष्टि आवे तो पन्द्रह दिनके बाद अपनी मृत्यु होगी ऐसा समझना । उपवास, पोरिसो इत्यादि पच्चखान करनेवालेने तो दातन आदि किये बिना है। शुद्धि जानना, कारण कि, तपस्याका फल बहुत बड़ा है । लोकमें भी उपवासादिक होने पर दातन आदि किये बिना भी देवपूजादि की जाती है । लौकिक शास्त्रमें भी उपवासादिके दिन दातन आदिका निषेध किया है। विष्णुभक्तिचन्द्रोदय में कहा है कि
प्रतिपद्दर्शषष्ठीषु मध्याहे नवमीतिथौ । संक्रांतिदिवसे प्राप्ने, न कुर्याद्दतधाननम् ॥ १ ॥ उपवासे तथा श्राद्धे, न कुर्याद्दतधावनम् । दंतानां काष्टसंयोगो, हंति सप्त कुलानि वै ।। २ ॥ ब्रह्मचर्यमहिंसा च, सत्यमामिषवर्जनम्।
व्रते चैतानि चत्वारि, चरितव्यानि नित्यशः ॥ ३ ॥ पडवा, अमावस्या, छट्ठी, और नवमी इन तिथियों में, मध्यान्हके समय, तथा संक्रान्तिका, उपवासका, और श्राद्धका दिन हो तो दातन नहीं करना, कारण कि, ऊपरोक्त दिनों में दातन करे तो सात कुलका नाश होता है। व्रतमें ब्रह्मचर्य, अहिंसा, सत्य, वचन और मांसका त्याग ये चार नियम नित्य पालन करना । बारम्बार पानी पीनेसे, एक वक्त भी तांबूल भक्षण करनेसे, दिनमें सोनेसे और स्त्रीसंग करनेसे उपवासको दोष लगता है।