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________________ ( १९० ) पुरुषका संयोग, नगरकी खाल तथा सब अशुचि स्थान इनमें संमूच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं। अंगुलके असंख्यातवें भाग समान अवगाहना वाले, असंज्ञी, मिध्यादृष्टि, अज्ञानी, सर्वपर्याप्त अपर्याप्त और अंतर्मुहूर्त आयुष्य वाले ऐसे वे संभूच्छिम मनुष्य ( अंतर्मुहूर्त में ) काल करते हैं। ऊपर " सर्व अशुचि स्थान " कहा है याने जो कोई स्थान मनुष्य के संसर्गसे अशुचि होते हैं वे सर्व स्थान लेना, ऐसा पनवणाकी वृत्ति में कहा है। दांतन की विधि. दांतन आदि करना होवे तो दोष रहित ( अचित्त ) स्थान में ज्ञातवृक्ष के अचित्त और कोमल दंतकाष्ठसे अथवा दांतकी हढता करने वाली अंगूठे की पासकी तर्जनी अंगुली से घिस कर करना | दांत तथा नाकका मल डाला हो, उसपर धूल ढांकना आदि यतना अवश्य रखना । व्यवहारशास्त्रमें तो इस प्रकार कहा है कि: -- airat eढता निमित्त प्रथम तर्जनी अंगुली से दांतकी दाढ़े घिसना पश्चात् यत्नपूर्वक दातन करना । जो पानी के प्रथम - कुल्लेमें से एक बिन्दु कंठमें चला जावे तो समझना कि, आज भोजन अच्छा मिलेगा। सरल, गांठ बिना, अच्छी कूची बनजावे ऐसा, पतली नोक वाला, दश अंगुल लम्बा, टशली कनिष्ठा अंगुली की नोकके बराबर जाडा, ऐसा ज्ञातवृक्ष के दांतनको कनिष्ठिका और
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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