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आदि वस्तु आती है तथा मूंगफली तथा सौंठ आदि खादिममें गुड इत्यादि वस्तु आती है । ये अंदर आने वाली कपूरादि वस्तुएं स्वयं क्षुधाका शमन नहीं कर सकतीं, तथापि क्षुधाका शमन करनेवाले आहारको मदद करती हैं, इसलिये इनको भी आहार ही में गिना है । इस चतुर्विध आहारको छोडकर शेष सव वस्तुएं अनाहार कहलाती हैं । अथवा क्षुधापीडित जीव जो कुछ पेट में डालता है, वह सर्व आहार है। औषधिआदिका विकल्प है, याने औषधिमें कुछ तो आहार है और कुछ अनाहार है । उसमे मिश्री और गुड आदि औषधि आहारमें गिनी जाती हैं और सर्प के काटे हुए मनुष्यको माटी आदि
औषधी दी जाती है वे अनाहार हैं । अथवा जो वस्तु क्षुधासे पीडित मनुष्यको खाने में स्वादु जान पडे वे सर्व आहार हैं।
और “ मैं यह वस्तु भक्षण करूं' ऐसी किसीको खानेकी इच्छा न हो, तथा जो जिव्हाको भी स्वादमें बुरी लगे, वे सर्व वस्तुएं अनाहार हैं । यथाः-- कायिकी, निम्ब आदिकी छाल, पंचमूलादिक, आमला हरडा बहेडा इत्यादिक फल ये सब अनाहार हैं। निशीथचूर्णिमें तो ऐसा कहा है किः-नीम आदि बृक्षोंकी छाल, उनके निम्बोली आदि फल, उन्हींका मूल इत्यादि सर्व अनाहार हैं।
पच्चक्खान के स्थान. अब पच्चक्खानके उच्चारणमें पांच स्थान हैं, उनका बर्णन करते हैं । प्रथम स्थानमें नवकारसी, पोरसी आदि तेरह