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________________ (१७७) मंठसी पचखानका लाभ. जिसे प्रमाद छोडनेकी इच्छा हो उसने क्षणमात्र भी पच्च. खान बिना रहना उचित नहीं । नवकारसी आदि कालपच्चखान पूरा होने के समय, 'गंठिसहिअं आदि करना। जिसको बारम्बार औषधि लेना पडती हो, ऐसे बालक, रोगी इत्यादिकसे भी ग्रंथिसहित पच्चखान सरलतासे होवे ऐसा है। इससे हमेशा प्रमादरहितपना रहता है, अतएव इसका विशेष फल है। एक सालवी मद्य, मांस आदि व्यसनों में बहुत आसक्त था, वह केवल एकही बार ग्रंथिसहित पच्चखान करनेसे कपर्दी यक्ष हुआ। कहा है कि "जे निश्चमप्पमत्ता, गठिं बंधति गठिसहिअस्स । सग्गापवम्मसुक्खं, तेहिं निबद्धं संगठिमि ।। १ ॥ जो पुरुष प्रमाद रहित होकर ग्रंथिसहित पच्चखानकी ग्रंथि (गांठ ) बांधते हैं, उन्होंने मानो स्वर्गका और मोक्षका सुख अपनी गांठमें बांधलिया है। जो धन्य पुरुष न भूलते नवकारकी गणना करके ग्रंथसंहित पच्चखानकी ग्रंथि छोडते हैं वे अपने काँकी गांठ छोड़ते हैं। जो मुक्ति पाने की इच्छा हो तो इस प्रकार पच्चखान कर प्रमाद छोडनेका अभ्यास करना चाहिये । सिद्धान्तज्ञानी पुरुष इसका पुण्य उपवासके समान कहते हैं। जो पुरुष रात्रिमें चौविहार पच्चखान और दिनमें ग्रंथिसहित पच्चखान ले एकस्थान पर बैठ एकबार
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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