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________________ (१७४) चूरमा, दही भात. खीर इत्यादिक वस्तु बहुतसे धान्यादिकसे बनी हुई होती हैं, तो भी रसादिकका अन्य परिणाम होनेसे एक ही मानी जाती हैं । पोली ( फलका ), जाडी रोटी, मांडी, बाटी, घूघरी. ढोकला, थूली, खाकरा, कणेक आदि वस्तु एक धान्यकी बनी हुई होती है तो भी प्रत्येकका पृथक् नाम पडनेसे तथा स्वादमें भी अंतर होनेसे पृथक २ द्रव्य माने जाते हैं । फला, फलिका इत्यादिकमें नाम एक ही है, तो भी स्वाद भिन्न है, उससे तथा रसादिकका परिणाम भी अन्य होनेसे वे बहुतसे द्रव्य माने जाते हैं । अथवा अपने अभिप्राय तथा संप्रदायके ऊपरसे किसी अन्य रीतिसे भी द्रव्य जानना । धातुकी शलाका ( सलाई ) तथा हाथकी अंगुली आदि द्रव्यमें नहीं गिने जाते । ३ भक्षण करनेके योग्य विगय छ हैं, यथा:- १ दृध, २ दही, ३ घी, ४ तैल ५ गुड तथा ६ घी अथवा तैलमें तली हुई वस्तु. ये छः विगय हैं । ४ उपानह याने जूते अथवा मौजे, खडाऊं ( पावडियां ) आदि तो जीवकी अतिशय विराधनाकी हेतु होनेसे श्रावकको तो पहरना योग्य नहीं । ५ ताम्बूल अर्थात् नागरबेल का पान, सुपारी, कत्था, चूना आदिसे बनी हुई स्वादिम वस्तु जानना । ६ वस्त्र अर्थात् पंचागादि देष जानना । धोती, पोती तथा रात्रिको पहिरनेके लिये रखा हुआ वस्त्र आदि वेषमें नहीं गिने जाते हैं । ७ फूल याने सिर पर तथा गलेमें पहिरनेके और गूंथकर शय्या पर
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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