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________________ (१६१) सचित्तअचित्तविभाग. उत्तरः-हे गौतम ! जघन्यसे अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्टसे सात वर्ष (योनि रहती है.) तदनंतर योनि सूख जावे तब (वे धान्य ) अचित्त होजाते हैं, और बाज हैं वे अबीज होजाते हैं। इस विषय पूर्वाचार्योंने इसप्रकार गाथाएं रची हैं, यथाःजवजवजवगोहुमसा-लिवीहिधण्णाण कुट्ठमाईसु । खिविआए उक्कोसं, वरिसतिगं होइ सजिअत्तं ॥१॥ तिलमुग्गमसूरकला-यमासचवलयकुलत्थतुवरीणं। तह वट्टचणयवल्ला-ण वरिसपणगं सजीवत्तं ॥ २ ॥ अयसी लट्टा कंगू , कोडूसगसणबरदृसिद्धत्था । कुद्दवरालय मूलग-बीआण सत्त वरिसाणि ॥३॥ (इन तीनों गाथाओंका अर्थ ऊपरके प्रश्नोत्तरोंमें आगया है.) कपास तीसरे वर्ष में अचित्त होता है। श्रीकल्पबृहद्भाष्यमें कहा है कि, कपास तीसरे वर्ष लेते हैं. अर्थात् कपास तीसरे वर्षका अचित्त हुआ लेना मानते हैं। आटेका अचित्त, मिश्र इत्यादि प्रकार पूर्वाचार्योंने इस प्रकार कहे हैं- आटा छाना हुआ न होय तो श्रावण तथा भादौं मासमें पांच दिन, आश्विन मासमें चार दिन, कार्तिक, मार्गशीर्ष और पौष मासमें तीन दिन,माह और फाल्गुण मासमें पांच प्रहर, चैत्र तथा बैशाख मासमें चार प्रहर और ज्येष्ठ तथा आषाढ मासमें तीन प्रहर मिश्र (कुछ सचित्त कुछ अचित्त)
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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