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________________ (१४५) मैं स्वयं अपना क्या ( अच्छा कि बुरा) दे उता हूं ? कौनसा दौष मैं नहीं छोडता ? वैसे ही आज क्या तिथि है ? आरिहंतका कल्याणक कौनसा है ? तथा आज मुझे क्या करना चाहिये इत्यादि विचार करे । इस धर्मजागरिकामें भावसे अपने कुल, धर्म व्रत इत्यादिकका चिन्तवन द्रव्यसे सद्गुरुआदिका चिन्तवन, क्षेत्रसे “ मैं किस देशमें ? पुरमें ? ग्राममें ? अथवा स्थानकमें हूं ?" यह विचार तथा कालसे "अभी प्रभात काल है ? कि रात्रि बाकी है ? " इत्यादि विचार करना । प्रस्तुत गाथाके "सकुलधम्मनियमाई" इस पदमें "आदि" शब्द है, इससे ऊपर कहे हुए सर्वविचारका यहां संग्रह किया। ऐसी धर्मजागरिका करनेसे अपना जीव सावधान रहता है और उससे विरुद्ध कर्मका तथा दोषादिकका त्याग, अपने किये हुए व्रतका निर्वाह, नये गुणका लाभ और धर्मकी उपार्जना इत्यादिक श्रेष्ठ परिणाम होते हैं। सुनते हैं कि, आनंद, कामदेव इत्यादिक धर्मी मनुष्य भी धर्मजागरिका करनेसे बोध पाये व श्रावकप्रतिमादि विशेषधर्मका आचरण करने लगे। यहां तक प्रस्तुत गाथाके पूर्वार्द्धकी व्याख्या हुई। उत्तरार्द्धकी व्याख्या। धर्मजागरिका कर लेनेके अनन्तर प्रतिक्रमण करनेवाले श्रावकने रात्रिप्रतिक्रमण करके, तथा न करनेवालेने भी
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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