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________________ ( १४२ ) समाधिमें रहे, वैसे ही ध्यान करनेका प्रयत्न करना | नवकार मंत्र इसलोकमें तथा परलोक में अति ही गुणकारी है । महानिशीथसूत्रमें कहा है कि " नासेइ चोरसावयविसहरजलजलणबंधणभयाई । चिंतिज्नंतो रक्खसरणरायभयाई भावेण ॥ १ ॥ अन्यत्रापि जाए व जो पढिज्जइ, जेणं जायस्स होइ फलरिद्धी । अवसाणेवि पढिज्जइ, जेण म सुग्गई जाइ ॥ १ ॥ आवइ पि पढिज्जइ, जेण य लंघेइ आवइसयाई | रिद्धएिवि पढिज्जइ, जेण य सा जाइ वित्थारं ॥ २ ॥ नवकारइक्कअक्खर, पावं फेडेइ सत्त अथराणं । पन्नासं च पएणं, पंचसयाई समग्गेणं ॥ ३ ॥ जो गुणइ लक्खमेगं, पूएइ विहीइ जिगनमुक्कारं । तित्थयर नामगोअं, सो बंधइ नत्थि संदेहो ॥ ४ ॥ अठ्ठेव य अट्ठ सया अट्ठसहस्सं च अट्ठ कोडीओ । जो गुण अट्ठ लक्खे, सोत अभवे लहड़ सिद्धिं ॥ ५॥ नवकार मंत्रका भावसे चितवन किया होवे तो वह चोर, श्वापद ( जंगली जानवर ), सर्प, जल, अग्नि, बंधन, राक्षस, संग्राम तथा राजा इतने द्वारा उत्पन्न हुए भयका नाश करता है | अन्यस्थान में भी कहा है कि, जीवके जन्मसमय में भी नवकार गिनना, कारण कि. उससे उत्पन्न होनेवाले बालकजीवको उत्तमफलकी प्राप्ति होती है। देहांत के समय में
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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