SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३६) से निकलना। सुख, लाभ और जय इसके चाहनेवाले पुरुषोंने अपने देनदार, शत्रु, चोर, विवाद करनेवाला इत्यादिकको अपनी शून्य (श्वासोश्वास रहित ) नासिकाके तरफ रखना। कार्यसिद्धिके इच्छुक पुरुषोंने, स्वजन, अपना स्वामी, गुरु तथा अन्य अपने हितचिन्तक इन सर्व लोगोंको अपनी चलती हुई नासिकाके तरफ रखना । पुरुषने बिछौने परसे उठते समय जो नासिका पवनके प्रवेशसे परिपूर्ण होवे उस नासिकाके तरफका पैर प्रथम भूमि पर रखना। . श्रावकने इस विधिसे निद्राका त्याग करके परममंगलक निमित्त आदरपूर्वक नवकारमंत्रका व्यक्तवर्ण सुननेमें न आये इस प्रकार स्मरण करना । कहा है कि-- परमिट्ठिचिंतणं माणसंमि सिनागएण काय । सुत्ताऽविणयपवित्ती निवारिआ होइ एवं तु ॥ १॥ बिछौने पर बैठे हुए पुरुषने पंचपरमेष्ठिका चितवन मनमें ही करना । ऐसा करनेसे परम आराध्य श्रुतज्ञानके सम्बन्ध अविनयकी प्रवृत्ति सकती है। दूसरे आचार्य तो ऐसी कोई भी अवस्था नहीं कि, जिसमें नवकारमंत्र गिननेका अधिकार न हो-ऐसा मानकर "नवकारमंत्रको सब अवस्थामें गिनना" ऐसा कहते हैं । ये दोनों मत प्रथमपंचाशककी वृत्तिमें कहे हैं। श्राद्धदिनकृत्यमें तो ऐसा कहा है कि, शय्याका स्थान छोडकर नीचे भूमिपर बैठना और भाववन्धु तथा जगत्के
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy