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________________ (१२३) " एक समय कोई मुनिराज सुरसुन्दरकी स्त्रियोंको पंच अणुव्रतका उपदेश करते थे। उस समय चुपचाप एकान्तमें खडे होकर देखते हुए सुरसुन्दरके मनमें मुनिराजके ऊपर ईर्ष्या उत्पन्न हुई । उसने मनमें सोचा कि, " इस मुनिके शरीरपर मैं पांच प्रहार करूंगा । “ मुनिराजने प्रथम प्राणातिपातविरमण नामक अणुव्रत दृष्टांत सहित कहा, तो उन स्त्रियोंने अंगीकार किया । इससे सुरसुन्दरने विचार किया कि, ये स्त्रियां कुपित होजावेंगी तोभी व्रत ग्रहण किया है इससे मुझे मारेंगी नहीं" यह सोच प्रसन्नतासे पांचमेंसे एक प्रहार कम किया । और इसी तरह एक २ व्रतके साथ एक २ प्रहार कम किया । उन स्त्रियोंने पांचों अणुव्रत लिये “ तब मुझे धिक्कार है ! मैंने नीच विचार किया" इस भांति सुरसुन्दर अत्यन्त पश्चाताप कर, मुनिराजसे क्षमा मांग, व्रत लेकर क्रमशः स्त्रियों सहित स्वर्गको गया।" सुदर्शनश्रेष्ठिआदिक श्रावककी भांति जो सम्यक्त्वमूल पांच अणुव्रत तथा उत्तरगुण अर्थात् तीन गुणव्रत व चार शिक्षा बत ऐसे बारह व्रत धारण करे, वह ३ उत्तरगुणश्रावक है । अथवा सम्यक्त्वमूल बारहव्रतको धारण करे, वह व्रतश्रावक है । तथा आनन्द, कामदेव, कार्तिकश्रेष्ठि इत्यादिककी भांति जो सम्यक्त्वमूल बारहव्रत तथा सर्वसचित्त परिहार, एकाशन पच्चखान, चौथाव्रत, भूमिशयन, श्रावकातिमादिक और
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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