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इस आकाशवाणीसे राजाको बहुत आश्चर्य हुआ तथा उक्तपुरुषको साथ लेकर उस योगिनी के पास गया । योगिनीने राजाको प्रीतिपूर्वक कहा कि "हे राजन् ! तूने जो दिव्य वचन सुना वह सत्य है । संसाररूपी भयंकर जंगलमें आया हुआ मार्ग बहुत ही विषम है, जिसमें तेरे समान तत्रज्ञानी पुरुष भी घबरा जाते हैं यह बडे ही आश्चर्यका विषय है । हे राजन् ! इस पुरुषका आरंभ से सर्व वृत्तान्त कहती हूं; सुन ।
'चन्द्रपुर नगरमें चन्द्रमाके समान आल्हादकारी यशवाला सोमचन्द्र नामक राजा तथा भानुमति नाम उसकी रानी थी । उसके गर्भ में हेमवन्त क्षेत्र से सौधर्म-देवलोकका सुख भोग कर एक युगल (जोडला) ने अवतार लिया। अनुक्रमसे भानुमति से ज्ञातीवर्गको आनन्ददायक एक पुत्र व एक पुत्रीका प्रसव हुआ । उनमें पुत्रका नाम चन्द्रशेखर व पुत्रीका नाम चन्द्रवती रखा गया । साथ साथ वृद्धि पाते हुए एकसे एक अधिक दोनों को जातिस्मरण ज्ञान हुआ । इतनेमें राजा सोमचन्द्रने चन्द्रवतीको तेरे साथ विवाह दी, तथा यशोमती नामक एक राजकन्यासे चन्द्रशेखरका विवाह किया । पूर्वभव के अभ्यास से चंद्रशेखर व चंद्रवती इन दोनोंका परस्पर बहुत अनुराग होगया तथा कामवासना से पूर्वभव के अनुसार सम्बन्ध करनेकी इच्छा करने लगे, धिक्कार है ऐसे सम्बन्ध को इस संसारमें जीवोंको कैसी २ नीच वासनाएं उत्पन्न होती हैं कि जिनका मुंहसे उच्चारण भी नहीं