________________
( ९८ )
और शुकराज युद्धकी तैयारी करने लगे परन्तु शूरवीर हंसराज उनको छोड़ स्वयं तैयार होकर युद्धस्थलमें जा पहुंचा। शूर भी बहुतसे शस्त्रास्त्रांस सुसज्जित हो एक भयंकर रथ पर आरूढ हो कर रणांगण में आया । अर्जुन और कर्ण के समान उन दोनों वीरोंका भयंकर शस्त्र युद्ध सब लोकोंके सन्मुख बहुत ही आश्चर्यकारी हुआ । श्राद्ध-भोजी ब्राह्मण जैसे भोजन करने में नहीं थकते वेसेही दोनों रणलोलुपी वरि बहुत देर तक नहीं थके । परस्पर समान वीर समान उत्साही तथा समान बलशाली दोनों राजकुमारोंको देखकर विजय लक्ष्मी भी क्षण मात्र संशय में पडगई कि किसके गलेमें जयमाला डालूं ? इतने ही में जैसे इन्द्र पर्वतक पंख तोडता है उस भांति हंसराजने अनुक्रमसे शूरके सब शस्त्र तोड दिये । इससे शूर मदोन्मत्त हाथी की भांति क्रोधित हो वज्र के समान मुट्ठी बांध कर हंसराजको मारने दौडा । यह देख राजा मृगध्वज चौंक कर शुकराजकी ओर देखने लगा । चतुर शुकराजने शीघ्र ही पिताका अभिप्राय समझ कर अपनी विद्याएं हंसराजके शरीर में पहुंचाई। हंसराज - ने इन विद्याओं के बलसे क्षण मात्रमें शूरको उठा लिया और बहुतसे आक्षेपयुक्त वचन कह कर गेंदकी भांति जोरसे फेंका। शूर अपनी सेनाको लांघ एक किनारे गिरा और मूर्छित होगया । सेवकों के बहुत प्रयत्न करने पर उसने बाह्य चैतन्यता पाया तथा कोपका प्रगट फल देख कर हृदयमें भी चैतन्य हुआ; और