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________________ ४. आतरिक शोधन समत्व की प्रयोगात्मक विधि से १. सम एक दृष्टि है रसायन परिवर्तन की, २. विभिन्न शक्तियों का सोत - समत्व साधना, ३. प्रतिकूल परिस्थिति में संतुलन का विवेक विषमता में स्थिरता, विवशता में स्वाधीनता, भयभीत अवस्था में धैर्यता, ज्ञानी सम अज्ञानी विषम वीतरागी सम सरागी विषम संयमी सम भोगी विषम ------ समत्वयोग समंता शब्दार्थ-समता शब्द का सामान्य अर्थ तटस्थ, माध्यस्थ, उदासीन, राग-द्वेष से रहित इत्यादि होता है । 'सत्वानुशासन में समता शब्द के विविध पर्याय प्राप्त होते हैं । जैसे–माध्यस्थ, समता, उपेक्षा, वैराग्य, साम्य, निःस्पृहता, परमशान्ति इत्यादि। पद्मनंदि पंचविंशतिका ग्रंथ में साम्य, स्वास्थ्य, समाधि, योग चित्त निरोध और शुद्धोपयोग इत्यादि शब्द समता के अर्थ में प्राप्त होते हैं। द्रव्य संग्रह सटीक में मोक्षमार्ग का अपरनाम परमसाम्य कहकर साम्य का वैशिष्ट्य स्थापित किया है। प्रवचन सार ग्रंथ में चारित्र ही धर्म है और धर्म ही साम्य है। साम्य मोह रहित (राग, द्वेष तथा मन, वचन, काया के योगोरहित) आत्मा का परिणाम है। नयचक्र ग्रंथ में समता के शुद्धभाव, वीतरागता, चारित्र, धर्म स्वभाव की आराधना इत्यादि पर्याय परिलक्षित होते हैं । म पाइअसहमहण्णवो - पृ. ८६४ २. तत्त्वानुशासन श्लो. ४-५ ३. पदमनन्दि पंचविंशतिका श्लो. ६४ ४. द्रव्य संग्रह - श्लो. ५६ की टीका ५. प्रवचन सार - श्लो. ७ . . .६. बृहत् नयचक्र श्लो. ३५६
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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