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________________ योग-प्रयोग-अयोग/२०९ प्रवृत्तियाँ करता है वह अस्थायी होती हैं । प्रवृत्ति के समाप्त होने पर उसकी स्मृति प्रतिच्छाया रूप अल्प समय तक रह जाती है। अतः चंचलता का एक हेतु स्मृति है। __ स्मृति की भाँति कल्पना भी चिन्ता का अस्थायी रूप है। कल्पना मानव मस्तिष्क में चलचित्र की तरह उभरती रहती है और प्रतिक्षण नये-नये रूप में रूपांतरित होती रहती है। अतः चंचलता का एक हेतु कल्पना भी है। साधक शरीर, मन और इन्द्रियों के माध्यम से बाह्य जगत के साथ सम्पर्क करता है। यह बाह्य जगत शब्द रूप, गंध, रस और स्पर्शमय है। वहाँ मन के अनुकूल और प्रतिकूल संयोग में राग और द्वेष उत्पन्न होता रहता है। अतः राग और द्वेष की परिणति भी चंचलता का हेतु है। जैसे दीपशिखा दीपक का एक परिणाम विशेष है। सूर्य की किरणें सूर्य का परिणाम विशेष हैं, उष्णता अग्नि का परिणाम विशेष है, शीतलता जल का परिणाम विशेष है। उसी प्रकार वृत्तियों का निरोध होने पर चित्त का निरोध अपने आप हो जाता है। मन का निरोध होने पर जब साधक एक आलंबन पर तात्त्विक चिन्तन करता है तथा उसी आलंबन में एकाग्र होता है वह ध्यान है। हमारा चिन्तन अनेक विषयों पर चलता रहता है उसे वह ध्यान नहीं कहते हैं । अतः ध्यान की पूर्व अवस्था या ध्यान टूटने के पश्चात् की अवस्था भावना और अनुप्रेक्षा की है, किन्तु चिन्ता, भावना और अनुप्रेक्षा से भिन्न चल चित्त के रूप में होती है। तात्त्विक चिन्ता के सहयोग से साधक भावना और अनुप्रेक्षा में स्थित होता है। इस प्रकार अभ्यास क्रम के साधक को ध्यानावस्था की प्राप्ति होती है। चित्त के भेद चित्त का स्वभाव चल, उद्वेगजन्य और बहिर्मुखी होने पर भी रूपान्तरण की प्रक्रिया से तात्त्विक और सात्त्विक उभयात्मक होता है। हेमचन्द्राचार्य ने चित्त के चार प्रकार बताए हैं - (१) विक्षिप्त, (२) यातायात, (३) श्लिष्ट और (४) सुलीन । १. विक्षिप्त चित्त - चल होता है। २..यातायात चित्त - किंचित् आनन्दमय होता है (क्वचित चल-क्वचित अचल) ३. श्लिष्ट चित्त - स्थिर और आनन्दमय होता है और ४. सुलीन चित्त - अति निश्चल और परमानन्दमय होता है। ४. ध्यायते चिन्त्यतेऽनैन तत्त्वमिति ध्यानम् ___ अभिधान राजेन्द्र कोश भा. ४, पृ. १६६२ ५. ध्यान विचार (नमस्कार स्वाध्याय प्राकृत विभाग पृ. २३६) ६. योगशास्त्र १२/२
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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